Thursday, 2 June 2016

बहुत हुआ सम्मान! कॉमेडियन्स मांगें आज़ादी!


कुंडी न खड़काएं राजन, सीधा अंदर आएं राजन






एक कॉमेडियन है. नाम है तन्मय भट्ट. दुनिया की नज़र में बदतमीज़ है. दुनिया का तो क्या ही कहें. दुनिया की नज़र में तो मैं बहुत ही शरीफ हूं. उसने एक वीडियो बनाया. लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर की नकल उतारते हुए. दोनों के बीच एक बातचीत होती हुई दिखाई. आवाज़ उसकी पर शकल उनकी. और दुनिया में हल्ला मच गया. कोई कहता है कि ये पागल है तो कोई कह रहा है कि लता मंगेशकर से माफ़ी मांगी जाए. बात काफ़ी आगे बढ़ चुकी है. इतनी कि उसके खिलाफ़ एफ़आईआर भी लिखी जा चुकी है. तन्मय की साढ़े-साती शायद उसी दिन शुरू हो गयी थी जिस दिन उसने अपने ग्रुप का नाम ऑल इंडिया बकचोद रख लिया था.



जिमी कार

मैं ब्रिटिश कॉमेडियन जिमी कार की स्टाइल ऑफ़ कॉमेडी को बेहद फॉलो करता हूं. इस देश में अगर उनके जोक्स या उस स्टाइल की कॉमेडी को फॉलो करना शुरू कर दिया जाए तो हम कॉमेडियन्स के एनकाउंटर होने जैसी खबरें अखबारों में पढ़ेंगे. अभी तक तो उन्हें बस पूछताछ और माफीनामे के लिए ही बुलाया जाता रहा है. जिमी कार कहते हैं “मैं कभी रूखा और असभ्य मिडल-क्लास कॉमेडियन नहीं होना चाहता था. आप एक अमुक तरह के जोक्स लिखते हैं. मेरे ज़्यादातर जोक्स रूखे और असभ्य होते हैं. हां ये आपके हिसाब से ग़लत होगा लेकिन ये मैं हूं.” ‘ये मैं हूं!’ आपको मालूम है आप इस ‘मैं’ को मैं नहीं रहने देना चाहते. आप उस ‘मैं’ को ‘मेरे मुताबिक़’ बनाना चाहते हैं. उससे बेहतर होगा कि एक फोटोकॉपी की मशीन पर लेट जाइए और अपनी ही दस-बारह कॉपियां बनवा लीजिये. उनके ही आस-पास रहिये. खुश रहेंगे आप और दूसरों को भी खुश रहने देंगे.
जिमी कार ही एक चीज और भी कहते हैं. ये कॉमेडी का मूल मन्त्र भी कहा जा सकता है. “एक कॉमेडियन के लिए सब कुछ बहुत आसान होता है. आपका एक रिफ्लेक्स ऐक्शन होता है. आप या तो हंसते हैं या नहीं हंसते. इससे दो बातें मालूम चल जाती हैं. आप या तो हमें चाहते हैं या आपको समझ ही नहीं आ रहा होता है कि आपके आस पास के लोग क्यूं हंस रहे हैं.” तन्मय भट्ट को अगर मैं उस वीडियो के लिए गालियां दे रहा हूं तो मतलब साफ़ है कि मेरा हाज़मा दुरुस्त नहीं है. हाजमा दुरुस्त करने को मुझे दवाई लेनी चाहिए लेकिन यहां मैं खाना बनाने वाले को दोषी ठहरा रहा हूं. मैं अक्सर ऐसा ही करता हूं. क्या करूं? थोड़ा आदत से मजबूर हूं. लॉजिक से दूर रहता हूं.
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में कानून की किताबों में समलैंगिकता अपराध है. देश का एक एमपी संसद में समलैंगिकता को कानूनी अनुमति दिलवाने के लिए बिल पेश करने की कोशिश करता है तो उसे पास नहीं किया जाता है. ये एक नमूना है देश की बौद्धिक समझ का. उस देश में जहां किकू शारदा किसी ‘बाबा’ सा गेटअप बना लेते हैं तो उन्हें पुलिस उठा कर ले जाती है. उस देश में जहां की अदालत में एक केस चल रहा है जिसमें इस बात पर विचार किया जा रहा है कि संता-बंता पर चुटकुले सुनाने चाहिए या नहीं. यकीन मानिए, अगर अदालत कहती है कि चुटकुला नहीं सुनाना चाहिए तो आप उस जोक को सुनाने पर एक अपराध कर रहे होंगे.
हमें ये समझने की ज़रुरत है कि जोक आखिर होता क्या है? उसके मायने क्या होते हैं? हमें ऐप्पल का मतलब सेब मालूम है. बनाना का मतलब केला मालूम है. लेकिन हमने जोक का मतलब तथ्य समझ लिया है. हमें हमेशा ही सिखाया जाता था कि कोई भी शब्द जब न समझ आये तो डिक्शनरी की मदद लें. यहां भी वही करते हैं.

कैम्ब्रिज डिक्शनरी कहती है कि कोई भी ऐसी चीज़ जिसे लोगों को हंसाने के उद्देश्य से कहा जाये, जोक कहलाता है. ऑक्सफोर्ड भी इस साजिश में शामिल मालूम होती है. उसका कहना है कि अगर कोई कुछ भी हंसाने के लिए कहता है तो उसे जोक कहा जाता है. खासकर तब जब वो एक हंसाने वाली पंचलाइन से खतम हो रहा हो. ये परिभाषा है एक जोक की.
इस जोक को तथ्य समझे जाने का ये मामला आया है तन्मय भट्ट के फॉर्म में. वही ऑल इंडिया बकचोद वाला तन्मय भट्ट. वही तन्मय भट्ट जिसे अपने एक क्रिश्चियन दोस्त को वर्जिन कहने पर एक पादरी से माफ़ी मांगनी पड़ी थी. तन्मय भट्ट के ऊपर एफ़आईआर हुई है. वजह? लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर की नक़ल करते हुए एक वीडियो बनाया. सोशल मीडिया पर डाल दिया. फिर वही हुआ जो हम हमेशा होता देखते आये हैं. भावनायें आहत हो उठी.

मेरे हिसाब से भावनाओं को अब कोई काम ढूंढ लेना चाहिए. न हो तो कहीं साल-छः महीने इंटर्नशिप ही कर ले. घड़ी-घड़ी आहत होती रहती है. बोर भी नहीं होती.

लोगों का कहना है कि लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर पर जोक नहीं बनाने चाहिए. क्यूंकि ये लेजेंड्स हैं. अच्छा? तो बाकी लोग इस दुनिया में ठेके पर बुलाये गए हैं? उनपर मज़ाक किया जा सकता है लेकिन लता और सचिन पर नहीं. आपकी ‘लेजेंड्स’ की परिभाषा क्या है? मेरे हिसाब से तन्मय भट्ट लेजेंड है. आप उसे कुछ मत कहिये प्लीज़. मेरी वाली भावना भी आहत होने लगती है. अब बताइए. ये बात बिलकुल सही है कि हर किसी की अपनी अपनी भावनाएं होती हैं. लेकिन आप एक बहुत ही सीधे से सवाल का जवाब दें. ये सवाल इंडिया के एक स्टैंड-अप आर्टिस्ट रजनीश कपूर ने पूछा है. उन्होंने पूछा कि मान लीजिये आप एक किताब पढ़ रहे हैं और उसमें एक जोक है जो आपको पसंद नहीं आया. ऐसे में आप क्या करेंगे? अगले पन्ने पे चले जायेंगे या लिखने वाले को ट्विटर पर ट्रेंड करवाने लगेंगे?
हममें से हर किसी का सेन्स ऑफ़ ह्यूमर एक जैसा नहीं होता. न ही सहने की क्षमता. ऐसे में आप एक बेकार जोक को बेकार नहीं कह सकते. वो मेरे हिसाब से बहुत अच्छा हो सकता है. बचपन में डबल मीनिंग जोक्स नहीं समझ आते थे. उम्र बढ़ते-बढ़ते समझ आने लगते हैं और उनमें बहुत मज़ा आता है. एक उम्र आने के बाद आप उनसे ऊपर उठ जाते हैं. उन्हीं जोक्स से आप बोर होने लगते हैं. ठीक उसी वक़्त कोई आदमी कहीं पर उसी डबल मीनिंग जोक पर हंस रहा होता है. क्या कीजियेगा? उसका सर फोड़िएगा या खुद का?
अब बात आई किसी जोक के सहने की क्षमता पर. आपको सहना सीखना पड़ेगा. और सीखना ही पड़ेगा. गर्मी लगने पर आप एसी चला लेते हैं. सूरज पर प्लेट नहीं ढक देते. ठण्ड लगने पर आप स्वेटर पहनते हैं या आग के पास बैठ जाते हैं. या किसी गर्म जगह चले जाते हैं. लेकिन अपने पैरामीटर के हिसाब से एक ख़राब जोक सुनने पर जोक सुनाने वाले को जेल भेजने की तैयारी करने लगते हैं. कमाल है! आप आगे क्यूं नहीं बढ़ सकते? क्यूं एक इंसान की कथित बेइज्ज़ती पर आप बिफ़र पड़ते हैं? क्यूं नहीं उसे एक बुरा जोक मात्र कहकर एक अच्छे जोक की शरण में पहुंच जाते हैं. वहां जहां आपके प्रिय सेलिब्रिटी, नेता, प्लेयर, हीरो, हिरोइन या किसी की भी बेहद बड़ाई की जा रही हो. सनद रहे कि जब आप किसी की बड़ाई कर रहे होते हैं तब आप बाकियों को नीचा दिखा रहे होते हैं. भावनायें किसी और की भी आहत हो रही होती हैं. बाकी, ’84 में कहां थे?’ वाली परम्परा तो हम कभी भूले ही नहीं हैं.
तन्मय भट्ट के बारे में कमाल के लोगों ने कमाल की प्रतिक्रियाएं दी हैं. अनुपम खेर साहब कहते हैं कि उन्हें 9 बार बेस्ट कॉमिक ऐक्टर के तौर पर अवॉर्ड मिला है. और उनके पास बेहतरीन सेन्स ऑफ़ ह्यूमर है. लेकिन जो तन्मय ने किया वो ह्यूमर नहीं है. सबसे पहली बात तो ये कि आपकी कॉमिक ऐक्टिंग और अच्छा सेन्स ऑफ़ ह्यूमर होने का आपस में कोई भी सम्बन्ध नहीं है. ऐक्टिंग आप फ़िल्म, स्क्रिप्ट और डायरेक्टर के हिसाब से करते हैं. सेन्स ऑफ़ ह्यूमर आप अपने साथ लेके चल रहे होते हैं जो सिर्फ आपका होता है. और अपने सेन्स ऑफ़ ह्यूमर को खुद ही अच्छे होने का सर्टिफिकेट भी दे दिया. लगता है सही कह रहे थे. सेन्स ऑफ़ ह्यूमर वाकई अच्छा है.
अक्सर चीप कॉमेडी करते नज़र आये रितेश देशमुख लता मंगेशकर की दुहाई देते हुए कह रहे हैं कि ये ‘कूल’ नहीं है.
अपना सपना मनी-मनी में क्रॉस-ड्रेस करके सानिया बदनाम बन जाना भी कूल नहीं है! और उन्हीं पर डोरे डालते हुए दिखते थे अनुपम खेर जिनका क्या कूल हैं हम में नाम था डीके बोस और जिनके कुत्ते का नाम था रोज़मेरीमारलो. कुत्तों की भावनायें जो होती होंगी तो वो भी शर्तिया आहत हुई ही होंगी.
सेलीना जेटली जो देश में LGBTQ आन्दोलन का एक बड़ा चेहरा रही हैं, आज तन्मय भट्ट के खिलाफ़ बोल रही हैं. वजह? लता मंगेशकर माननीय हैं. वाह! ये शायद पहली बार नहीं हो रहा है जब एक मौके पर लिबरल सोच वाली शख्सियत दूसरे किसी मौके पर अपनी उस सोच के उलट काम कर रही हो. और याद रहे कि देश में LGBTQ होना अपराध है जबकि वीडियो बनाना अभी तक तो नहीं.
सो-कॉल्ड बॉलीवुड में सेंसरशिप को लेकर जिस तरह से आवाजें उठती रही हैं, वही आवाजें आज तन्मय पर लगायी जा सकने वाली सेंसरशिप पर या तो चुप हैं या उसकी ही वकालत कर रहे हैं.
लोग कह रहे हैं कि उसे गिरफ़्तार किया जाए. क्यूं? क्यूंकि उसने एक जोक बनाया. एक हैं जो कह रहे हैं कि वो तन्मय को सरेआम पीटेंगे. क्यूं? क्यूंकि उसने एक जोक बनाया. आप जंगली हैं क्या? उसको तमीज़ सिखाने के लिए खुद बदतमीज़ी करेंगे? उसे जेल भेजा जाए. लेकिन जब आप उसे पीटेंगे तो जेल तो गुरु आप भी जायेंगे. हालांकि सपने आपने राष्ट्रभक्त घोषित किये जाने के देखे होंगे. अगर वो वीडियो इतना ही नागवार गुज़र रहा है तो आप उसी की भाषा में उसे जवाब क्यूं नहीं दे देते? क्यूं नहीं आप भी एक भद्दा वीडियो तैयार करें जिसमें तन्मय भट्ट की छीछालेदर कर दी जाए. करिए. किसने रोका है? ऐसा करना कोई अपराध नहीं है. इसके लिए आप पूरी तरह से फ्री हैं. मैं तो ये भी प्रपोज़ करता हूं कि आप इस काम में अनुपम खेर की मदद लें. उन्हें 9 बार कॉमिक ऐक्टिंग के लिए अवॉर्ड मिला है और सुना है उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी बेहतरीन है.
आपको एक वीडियो, एक जोक से इतना रंज है? तो सोचिये ख़ुदा-न-खास्ता किसी दिन ऐसे ही किसी सेलिब्रिटी जिसे आप पूजते हैं, के बारे में एक बुरी खबर सुनने को मिले. आप अपनी भावनाओं का क्या करेंगे? कैसे रोकेंगे? कैसे मानेंगे कि वो भी एक इंसान ही है और वो ग़लत भी हो सकता है (या दबी ज़ुबान में कहूं तो उसपर चुटकुले भी बनाये जा सकते हैं) . उसकी गिरफ्तारी पर आप पुलिस पर पथराव करेंगे? सच में? आपको यकीन करना ही पड़ेगा. वैसे ही ये भी यकीन कर ही लीजिये कि लता मंगेशकर और सचिन तेंदुलकर पर जोक बनाए गए हैं. बनाये जायेंगे. कोई ग़लत बात नहीं है.

सचिन और लता कल लेजेंड्स थे, आज भी हैं और कल भी रहेंगे. एक चुटकुला उनके कद के सामने बेहद बौना है.

वो वीडियो आपको नहीं पसंद आया तो वो जोक सुनिए जो आपको पसंद है. मुझे कोई जोक नहीं पसंद आता तो नहीं हंसता हूं. ऐसा ही आप भी करके देखें. मेरे कहने पर. सिर्फ एक बार. प्लीज़. अच्छा लगेगा. पिंकी प्रॉमिस
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