‘दिलजले’ में अजय देवगन ने जुल्फों का झज्जा उठाते हुए कहा था.
‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था
मेरी किश्ती भी वहां डूबी, जहां पानी कम था’
2016 में ये शेर अगर किसी पर सबसे ज्यादा सेट बैठता है, तो वो है कांग्रेस. चुनाव कहीं भी हो. रिजल्ट वाले दिन राहुल गांधी मम्मा समेत अपने दड़बे से बाहर आते हैं. वही बात, उसी कॉन्फिडेंस के साथ रिपीट करते हैं,
‘हमें हार के कारणों की समीक्षा करनी होगी.’
बीजेपी वाले कहते हैं, ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ कर देंगे. बीते चुनावी रिजल्ट इस बात को पुख्ता करते से नजर आते हैं. राज्यों से कांग्रेस धीरे-धीरे लुप्त हो रही है. उत्तराखंड में पहले 9 कांग्रेस विधायक बागी हुए तो राष्ट्रपति भवन तक हल्ला कट गया. बड़ी मुश्किलों से हरीश रावत सीएम की कुर्सी वापस हासिल कर पाए. अब त्रिपुरा में 6 कांग्रेस विधायक इस्तीफा देकर पार्टी से बाहर हो लिए हैं. अगर आप इसके लिए भी बीजेपी को जिम्मेदार मान रहे हैं, तो अपने मन के विरोधी होने को प्यार से थोड़ा सहलाइए. क्योंकि ये कांग्रेसी विधायक इस्तीफा देकर ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए हैं.
कांग्रेस का सबसे बड़ा दुश्मन और दोस्त आईना है. जिसे बीते अच्छे-खासे वक्त से वो शायद सलीके से देख नहीं रही है. यानी खुद के लोग ही बेगाने होते जा रहे हैं. नए चुनाव हार दे रहे हैं. पुराने चुनाव में जीत से बनी सत्ता की दीवार का प्लास्टर धीरे-धीरे झड़ता जा रहा है. बीते कुछ वक्त में कांग्रेस के खासम खास लीडर्स ने पार्टी को अलविदा कहा है. कुछ ऐसे नाम भी हैं, जो कमस कम अगले पांच साल तक कांग्रेस के सीने में खुरचन की तरह चुभते रहेंगे. पूर्व कांग्रेसी और अब भाजपाई हुए हेमंता बिस्वा सरमा सबसे नई नजीर हैं.
बीजेपी ने असम में जो चुनावी खेला कर दिखाया है. हेमंता बिस्वा सरमा उस खेले के जाबड़ खिलाड़ी हैं. पुरानी वफादारी छोड़ने की वजह वाले नामों में हेमंता ने 45 साल के युवा युवराज राहुल गांधी को बताया. कहा,
‘जब जरूरी बैठकें होती. बड़े नेता आपस में झगड़ रहे होते. तब राहुल गांधी टेबल पर बैठ अपने कुत्ते को खिला रहे होते. कांग्रेस के बड़े लीडर्स के लिए रखे बिस्किट राहुल गांधी का कुत्ता खा जाता. राहुल ये देख मंद मुस्कियाते. बताइए ऐसे काम करना कैसे पॉसिबल है. राहुल कार्यकर्ताओं की नमस्ते का मुस्कुराकर जवाब तक नहीं देते. इसलिए मैंने कांग्रेस को गुडबाय कहने का फैसला लिया.’
हेमंता तो बस झांकी हैं, पूरी पिच्चर बाकी है. बीते दो सालों में 13 से ज्यादा बड़े लीडर्स ने कांग्रेस का पल्लू छोड़ा है. गौर कीजिएगा. ये पहले AAP और अब BJP के विनोद कुमार बिन्नी सरीखे नेता नहीं हैं. बड़े नेता हैं, जो जब मंच पर खड़े होते हैं तो पीछे जिस पार्टी का चुनाव चिन्ह और चेहरा लगा होता है. EVM मशीन पर उसके आगे की बत्ती वोटिंग वाले दिन जलती जाती है.
अब जरा उन नामों पर गौर कीजिए, जो बीते दो साल में कांग्रेस से खिन्न मन लेकर निकल पार्टी का दामन छोड़ चले हैं.
1. गुरदास कामत, महाराष्ट्र
2. चौधरी बिरेंदर सिंह, हरियाणा
3. जीके वासन, तमिलनाडु
4. जयंती नटराजन, तमिलनाडु
5. सत्यनारायण, आंध्र प्रदेश
6. डी श्रीनिवास, आंध्र प्रदेश
7. विजय बहुगुणा, उत्तराखंड
8. कलिको पुल, अरुणाचल प्रदेश
9. हेमंत बिस्वा सरमा, असम
10. कामत, महाराष्ट्र
11. अजीत जोगी, छत्तीसगढ़
12. बेनी प्रसाद वर्मा, उत्तरप्रदेश
13. सुदीप रॉय, त्रिपुरा
2. चौधरी बिरेंदर सिंह, हरियाणा
3. जीके वासन, तमिलनाडु
4. जयंती नटराजन, तमिलनाडु
5. सत्यनारायण, आंध्र प्रदेश
6. डी श्रीनिवास, आंध्र प्रदेश
7. विजय बहुगुणा, उत्तराखंड
8. कलिको पुल, अरुणाचल प्रदेश
9. हेमंत बिस्वा सरमा, असम
10. कामत, महाराष्ट्र
11. अजीत जोगी, छत्तीसगढ़
12. बेनी प्रसाद वर्मा, उत्तरप्रदेश
13. सुदीप रॉय, त्रिपुरा
गौर को जरा फरमाए रखिएगा, क्योंकि ये सिर्फ बड़े नेता हैं. उत्तराखंड में कांग्रेसी बागियों का नेतृत्व करने वाले पार्टी के पूर्व प्रिय हरक सिंह रावत नामक तमाम लीडर्स इस लिस्ट में शामिल हैं. ज्यादातर अब पूर्व हो चुके कांग्रेसी नेताओं के मन में ‘खिन्नाहट की भिन्नाहट’ के जिम्मेदारी पार्टी के आलाकमान हैं. माना जाता है कि पार्टी के भीतर कोई सुनने वाला नहीं है. 10 जनपथ से फोन कांग्रेस शासित राज्यों में जाता तो है, पर ये फोन और प्रोटोकॉल सिर्फ टॉप टू टॉप तक ही सीमित रह जाता है. सड़कों पर टहलने वाला और दोपहर के ढाई बजे वोट के लिए लोगों के घरों की कुंडी खटखटाने वाला कार्यकर्ता कहीं छूट जाता है. त्रिपुरा में लेफ्ट की सरकार है. सुदीप रॉय के कांग्रेस को छोड़ने से पार्टी सदन में पक्ष छोड़िए, विपक्ष का तमगा भी खो चुकी है.
कांग्रेस की यही कमजोरी बीजेपी की ताकत बताई जाती है. कहते हैं अमित शाह जिस राज्य में चुनाव कैंपेन संभाल रहे होते हैं, वहां के हर वॉर्ड के कार्यकर्ता से सीधा फोन पर बात करते हैं. अब इसी खूबी को कांग्रेस के भीतर समझिए. 1984 में राजीव गांधी महाराष्ट्र जाते हैं. एक लीडर चुनकर लाते हैं, नाम गुरदास कामत. ये बंदा 5 बार चुनाव लड़ता है, जीतता है और सांसद बनता है. 2014 में लोकसभा चुनावों में हार मिलती है. पार्टी के अंदर एक चुनाव हारने के बाद इंपॉर्टेंस कम होती जाती है. आलाकमान खबर लेना सही नहीं समझती. नतीजा गुरदास कामत कांग्रेस से इस्तीफा देते हैं. हालांकि वजह पर्सनल बताई जा रही है. पर एक बड़े नेता को कांग्रेस खो चुकी है. हालांकि बड़े नेताओं को खोने में बीजेपी के हाथ भी बुजुर्गों के पैर छूने से रंगे हुए हैं. लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी मार्गदर्शक मंडल में विराजमान हैं. खुदा उनको लंबी उम्र दे.
एक फैक्ट ये भी है कि 2014 लोकसभा चुनावों में बीजेपी के 282 सांसद जीते. इन सांसदों में कई सांसद पूर्व कांग्रेसी थे. एक तरह से ये कहा जा सकता है कि इन सीटों पर बीजेपी नहीं, पूर्व कांग्रेसी जीते. फर्ज कीजिए कि अगर ये पूर्व कांग्रेसी, कांग्रेसी बने रहते तो शायद युवा नेता राहुल गांधी एक बार कम अपने दड़बे से निकलकर कह पाते,
‘हमें हार के कारणों की समीक्षा करनी होगी.’
हालांकि ये शायद सच होना पॉसिबल नहीं था. पर फिर भी 44 का चुभनशील आंकड़ा कुछ बेहतर हो जाता. दरअसल कांग्रेस को समीक्षा नहीं, तसल्ली करनी होगी. पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं के मन में और उन तमाम जगहों, जहां कांग्रेस ने अपने सियासी पैर अड़ाए हुए हैं. क्योंकि आप सत्ता में 10 साल थे. भारत में सबसे ज्यादा शासन भी आपकी पार्टी ने ही किया है. ग़र आप ही इस सियासी खेल को नहीं समझेंगे तो पहले महात्मा गांधी और अब बीजेपी के शाह का ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना सच होने में देर नहीं लगेगी. पार्टी के तमाम नेता कांग्रेस में फेरबदल को लेकर दबी जुबां बात करते रहते हैं. राहुल का बड़े नेताओं से प्रेम हेमंता पहले ही बता चुके हैं कि राहुल के लिए किसी लीडर की सबसे बड़ी काबिलियत लीडर के बाप का नाम है, उनकी राजीव और इंदिरा गांधी से नजदीकियां हैं. हर बार पार्टी में फेरबदल की बात की जाती है. लेकिन सब फिरता है, सिवाय फेरबदल के फिरने के.
कांग्रेस के प्यारे युवराज अपनों का दर्द और बात नहीं समझेंगे तो रिश्ते और राजनीति दोनों में ब्रेकअप होना कंफर्म है. समझिए, वरना एक लाइन तो तैयार रखी ही है.
‘हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था
मेरी किश्ती भी वहां डूबी, जहां पानी कम था’
मेरी किश्ती भी वहां डूबी, जहां पानी कम था’
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