गंदी बात

इस आर्टिकल को निगार खान ने अंग्रेजी में लिख हमें भेजा. हमें लगा इसे हम सबको पढ़ना ही चाहिए. इसलिए ट्रांसलेट किया. निगार दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए कर रही हैं. या यूं कहिए, कर ही लिया. पांच साल पहले दिल्ली आने वाली निगार एक ऐसी जगह से आती हैं, जहां लड़कियों को स्कूल पास करते ही ब्याहने की भूमिका बांधनी शुरू कर दी जाती है. और अगर विरोध न करो, तो फोटो और बायो-डाटा के बेस पर लड़कियों की शादी कर दी जाती है. दिल्ली जैसे तेज़ शहर में अपनी लड़ाइयां खुद लड़ती, परिवार और रिश्तेदारों के कल्चरल बोझ से लड़ती एक लड़की क्या सोचती है, कैसे रहती है, इसे खूब दर्ज किया है निगार ने.
तुम कोई अपवाद नहीं हो
तुम पोस्ट-ग्रेजुएट हो, देश की अव्वल यूनिवर्सिटी से. आधे दशक से इस शहर में रहने के अलावा तुम्हारे पास कोई तजुर्बा नहीं है. तुम खास नहीं हो. तुमने अंग्रेजी लिटरेचर की पढ़ाई की है. और तुम्हारी कजिन जो जूनियर इंजिनियर है, इतनी काबिल है कि उसे खुद से कई साल बड़ा अमीर पति मिल गया.
तुम दिल्ली में जिंदा रहीं
तुमने एक ऐसी जिंदगी जी है, जिसमें तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हारे अब्बा को एक क्रांतिकारी के रूप में देखा है. एक ऐसे पिता, जिन्होंने अपनी बेटी को पढ़ने के लिए घर से 500 किलोमीटर दूर भेज प्रोग्रेसिव होने का सबूत दिया है. तुमने अपने कॉलेज में अलग-अलग पद संभाले हैं. इस साल के अंत तक तुम 23 साल की हो जाओगी. तुम एक अच्छी स्टूडेंट रही हो. हमेशा फर्स्ट डिवीज़न पाने वाली. तुम इतनी क्वालिफाइड हो कि अगर नौकरी खोजो, तो खुद को पालने जितना कमा सकती हो.
एक स्थायी घर, अब नहीं है
जबसे तुम बाहर आईं, तुमने हर दिन घर पर दो बार फ़ोन किया. ये तुम्हारी आदत में शुमार था. तुम्हें नहीं पता, कब प्यार पीछे छूटता गया. तुम्हें मालूम नहीं, ये रिश्ते क्यों बचे हुए हैं. सिर्फ फर्ज की अदायगी के लिए, या सिर्फ प्रेमरहित लगाव में. तुमने खुद को सिखा दिया है कि ये प्यार ही है. तुमने फ़ोन पर खुश होकर बात करना सीख लिया है. जबकि हजारों चीजें हर दिन तुम्हें नीचे खींचती रहती हैं. तुम्हें लगता है कि तुम खुदगर्ज हो, क्योंकि घर से पैसे लेती हो. फिर तुम याद करती हो कि तुमने भी इंटर्नशिप और ट्यूशन से पैसे बनाए थे. लेकिन सारे पैसे घर भेज दिए. ये कह कर कि मैं इनका क्या करूंगी.
तुम बदल गई हो
तुम्हारा फ़ोन तुम्हारा नया साथी है. इयरफ़ोन लगाए तुम दिन भर उसी में घुसी रहती हो. तुम भूल जाती हो उन रिश्तेदारों की सुनना, जो आज तक कभी तुमसे खुश नहीं रहे. तुम अगर उन्हें सुन भी लो, वो तो भी खुश नहीं होते. न ही तुम्हें बेहतर महसूस होता है. तुमने लड़की होते हुए उनके बेटों से ज्यादा पढ़कर उनकी नफरत कमाई है. तुमने नफरत कमाई है तुम्हारी नाक में नकेल डालने के लिए उनके भेजे गए रिश्तों को ठुकराकर. तुमने हमेशा यही माना है कि तुम एक ऐसे लिबरल समूह का हिस्सा हो जो औरत को मौन कर देने वालों के खिलाफ लड़ते हैं.
चीज़ें क्यों ख़राब हो गईं
जबसे तुम्हारे और घर वालों के बीच का संवाद मरने लगा, तुमने उन दिनों को बार-बार याद किया, जब बिना बाजू वाली फ्रॉक में तुम्हें सब्जी मंडी ले जाया जाता था, घर की सब्जियां खरीदने. तुम्हें मालूम नहीं पड़ा कि तुम्हारे लिए अपने ही घर में घूमना कब अपराध हो गया, तब, जब तुम्हारे रिश्तेदार अपने मिलने वालों के साथ तुम्हारे घर आते. फिर भी तुमने कभी सर नहीं ढका. तुमने जींस पहनना चाहा तो घर वालों ने पहनने दिया. तुम्हारी कई सहेलियां तुम्हारे अम्मी-अब्बा से खूब बातें करतीं. लेकिन एक लड़के दोस्त का तुम्हारे घर पर डिनर पर आना तुम्हारे लिए कितना कुछ खराब कर सकता है, तुम्हें मालूम न था.
अब्बा, जो हमेशा साथ रहे
तुमने उनसे अपने सारे डर, शक, शुबहे सब कहे हैं. उन्होंने दुनिया देखी है. वो तुम्हारी क्षमताओं में विश्वास करते आए हैं. फिर ऐसा क्या हुआ कि जिस सड़क पर वो तुम्हें हाथ पकड़ कर आगे तक लाए थे, उसी सड़क के एक मोड़ पर उन्होंने तुम्हारा साथ छोड़ दिया. एक समय वो अपनी बेटी को देश के बाहर भेजना चाहते थे, पढ़ने के लिए. वो तुम्हें ईंधन देते रहे, पढ़ने, आगे बढ़ने का. लेकिन अब वो वही पुराने अब्बा नहीं रहे. उन्होंने समाज के प्रेशर के चलते हथियार डाल दिए. आखिर एक कुंवारी लड़की को पराए मुल्क में अकेले कैसे भेज सकते हैं.
लिटरेचर, एक डिस्टोपिया
तुमने लिटरेचर को सूती कुर्ते और साड़ियां पहनने वाली प्रोफ़ेसरों से समझा. वो प्रोफेसर, जिन्होंने अपनी मर्ज़ी से शादी की, नहीं की, या खराब शादियों में रहने से बेहतर तलाकशुदा जिंदगी को पाया. तुमने उनसे प्रेम किया, उनके जैसा बनना चाहा. उस समय हर चीज़ से लड़ जाना आसान लगता था. तुमने तब नहीं सोचा कि आने वाला समय कैसा होगा. जिन आदर्शों के बल पर तुम जीती रहीं, तुम्हारे रिश्तेदारों के लिए वो बकवास थे. तुम उनमें फिट नहीं होती थीं.
निकाह, एक सच
तुम्हें मालूम था कि वो दिन भी आएगा. तुम तैयार थीं, शादी के सवाल के लिए. तुम्हें सच तो मालूम ही था. वो सच जो सैकड़ों साल पहले जेन ऑस्टेन ने अपने नॉवेल्स में लिख दिया था. वो सच जिसकी वजह से तस्लीमा नसरीन को उनके देश से निकाला गया. वो सच जिसकी वजह से कुछ दिनों पहले पाकिस्तान की सबीन महमूद को गोली मार दी गई. लड़की होने का सच. 30 से ज्यादा उम्र का लड़का तुम्हारे दरवाज़े खड़ा है तुमसे शादी करने के लिए. वो लड़का जो सिर्फ एक ग्रेजुएट है. वो लड़का जिसने अपनी जवानी मिडिल ईस्ट में पैसे कमाने में बिता दी. वो लड़का जिसे तुम जानती तक नहीं. तुम्हें लड़के पर अफ़सोस नहीं होता. बल्कि इस समाज पर होता है जो इन शादियों को बढ़ावा देता है. तुम सोचती हो कि ये समाज क्यों चाहता है कि खुद से कम पढ़े लड़के से शादी के लिए तुम हां कर दो. रिश्तेदारों की दलीलों से तुम हताश हो जाती हो. और जब देखती हो कि उन लोगों में तुम्हारी अम्मी भी शामिल हैं, तुम्हारे हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते हैं.
सबसे बड़ा सवाल
तुम इतनी हताश हो कि अब तुम्हें गुस्सा भी नहीं आता. न रिश्तेदारों पर, न अम्मी पर. पर अपने होने पर खीज होती है. तुम्हें पता है तुम एक लड़की हो. तुम अपने तरीके से फेमिनिस्ट रही हो. तुमने अपने आप को दूसरों से बेहतर माना है. ये सच है कि तुम सिगरेट या शराब नहीं पीतीं, ड्रग्स नहीं लेतीं, सेक्शुअली एक्टिव नहीं हो. लेकिन ये तुम्हारे जीने का तरीका है. तुम फिर भी धार्मिक नहीं हो. और ऐसा भी नहीं है कि तुमने मर्दों से नफरत की है. तुमने बहुत से मर्दों को चाहा, कुछ से दोस्ती की, और उससे भी कम मर्दों से प्रेम किया. तुम्हें उन दोस्तों को देखकर दुख होता है जो अपनी शर्तों पर नहीं जी पातीं. तुम्हारे कई पक्की सहेलियां रहीं, जो ये सब करती थीं. तुमने उनकी इज्ज़त की. तुम्हें तुम्हारे खोल से निकालने के लिए. उन्होंने तुम्हें जीना सिखाया, ये सिखाया कि जिस बोझ को घर से लेकर आई हो, उसे उतार फेंको.
ऐसा नहीं है कि तुम अपने अम्मी-अब्बा से प्यार नहीं करती. और वो सवाल भी नहीं है. सवाल ये है कि पांच साल तक पढ़ने-लिखने के बाद तुम्हें बिना तुम्हारी मर्ज़ी के शादी के नर्क में क्यों धकेला जा रहा है. तुम शादी के लिए मना करती हो तो उन्हें लगता है जरूर कोई और लड़का होगा. वही लड़का होगा जो उस रात घर पर खाने पर आया. वरना तुम शादी के लिए क्यों मना करती. तुम समझ नहीं पाती हो कि क्या एक मर्द के रिश्ते को तभी ठुकराया जा सकता है, जब किसी दूसरे मर्द से प्यार हो. क्या एक उम्र के बाद लड़की का अकेला, अपने लिए जीना काफी नहीं?
तुम्हें मालूम नहीं तुममें ऐसी क्या कमी है, कि तुम्हें बकरे की तरह जल्द से जल्द किसी के घर बांधा जाना जरूरी है. तुम्हारा शरीर थुलथुल है, कद छोटा है, इसलिए, सिर्फ इसलिए तुम्हारी शादी किसी से भी कर देनी चाहिए? दिल्ली में 5 साल बिताते हुए, अपनी हर छोटी-बड़ी लड़ाई खुद लड़ते हुए भी तुम्हें एक ऐसी लड़की की तरह देखा जाता है जिसकी जल्द से जल्द किसी अमीर लड़के से शादी कर देनी चाहिए. तुम अपने रिश्तेदारों को समझा नहीं सकतीं कि तुम सिर्फ शादी के लिए तैयार एक लड़की नहीं हो. तुम एक ऐसी मुसलमान लड़की हो, जो बहुत सी लड़कियां नहीं हो पाईं. पढ़ी-लिखी, सशक्त. तुम अपने खानदान की पहली लड़की हो जिसे पढ़ने के लिए शहर के बाहर भेजा गया.
तुम खुद के फैसले लेने वाली आज की लड़की हो.
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